सोमवार, 1 सितंबर 2014

जो सितारे चमकदार हैं

जो सितारे चमकदार हैं,
वो बुलंदी के हक़दार हैं !
क्या अदब में जगाह पायेगें,
ज़ुल्फो रुख के जो बीमार हैं !
वो हवाओं में उड़ने लगे,
जो ज़मीं के गुनाह्गार हैं !
वाइज़े बे अमल आज भी,
तेरी बातें मज़ेदार हैं !
सरहदों के हैं हम पासबां,
सर कटाने को तय्यार हैं !
जो लबों पर शहीदों के थे,
वो भी उर्दु के अशआर हैं !
मुसकुराती हैं कलियां "शिहाब",
फिर बहारों के आसार हैं !
एजाज़ उल हक़ "शिहाब"

गुरुवार, 21 अगस्त 2014

सियासत का सच

सियासत सच से वाबस्ता ज़ुल्म पर क़हर बन जाए,
सियासत गर जो हो गंदी  दिलों का ज़हर बन जाए !

सियासत हो जो दंगो की वहां एक रात बन जाए,
सियासत हो जो नंगो की वहां ग़ुजरात बन जाए !

सियासत खेल है शतरंज का बिछ्ती बिसातें हैं,
के नेता जब सियासत खैलते लुटती बारातें हैं !

सियासत मैं नहीं माँ बाप और ना ही बहन भाई,
सियासत ने बहुत से देशों की है नाक कटवाई !

सियासत मैं किया जो ज़ुल्म तो इनआम मिलता है,
चुनावी रण मैं फिर प्रधान का भी नाम मिलता है !

कोई नंगाई को जब ओड लेता है सियासत में,
तो फिर नोटों से सब कुछ मोड लेता है सियासत में !

सियासत चीज़ है एसी के  छोडे से नहीं छुट्ती,
गरीबों की रहे इज़्ज़त सरे बाज़ार यूँ लुट्ती !

गरीबों को खत्म करते हैं ये ना के गरीबी को,
सियासी लोग धोका देते हैं अपने क़रीबी को !

सियासी लोग कहते हैं के जब हम वोट पाते हैं,
भला इस देश का होता है जब हम नोट खाते हैं !

के करते खर्च हम पैसा तो आता है बज़ारों में,
ना ज़िंदों की क़दर इनको लगाते हैं मज़ारो में !

सियासी लोग तो लड लेते हैं कुश्ती के दंगल भी,
के जब करते हैं घोटाले तो फिर होती है मंगल भी !

करोगे चपलूसी तुम या फिर तुम झूट बोलोगे,
समझ लो तुम सियासत  में कई दरवाज़े खोलोगे !

सियासत ले के डूबेगी यक़ीं है ये "शिहाब" एक दिन,
जो करते हैं गुनाह देना पडेगा फिर हिसाब एक दिन !

गुरुवार, 14 अगस्त 2014

हर खुशी क़ुर्बान कर डालो वतन के नाम पर

हर खुशी क़ुर्बान कर डालो वतन के नाम पर ,
याद रक्खो अपनी आज़ादी को हर हर गाम पर,
मुस्कुराते ही रहो तुम गर्दिशे अय्याम पर ,
और नज़र अपनी रक्खो आगाज़ पर अंजाम पर,
बढ के हम डाले सितारों पर कमंदे कामयाब !
हिंद का हर बच्चा बच्चा काश देखे एसे ख्वाब !!


मुस्तक़िल अपने इरादे अज़्म हो अपना ॼवाँ ,
लहलहाती खेतियाँ हो, जगमगाते आशीयाँ,
मुस्कुराती बस्तीयाँ हो, खिल्खिलाते गुल्सिताँ ,
और हो हर एक दिल में प्यार  के चश्मे रवाँ,
सर पे आज़ादी के भी अम्नो अमाँ का ताज हो !
हो गरीबी खत्म खुशहाली का घर घर राज हो !!

आरज़ू हे काश में भी एक दिन एसा बनूँ,
में हूँ आइना वतन क पत्थरोँ से क्यु डरूँ,



आज भी मुझको "शिहाब" अपने वतन पर नाज़ हे !
इत्तेहादो अमन की ये एक हसीन आवाज़ हे !!
                                एजाज़ उल हक़ "शिहाब" अज़ीज़ी, जयपुर


गर्दिशे अय्याम - परेशानी का वक़्त,  मुस्तक़िल- मज़बूतअज़्म - होंसला, चश्मे रवाँ - झरने चलना, इत्तेहादो अमन - भाईचारा